यह तो बता देते कया चाहते हो तुम
क्यूँ मुझे चाक चाक करते हो
मैं तो इन ज़र्रों को कफ़न में लपेटे हूँ
कभी याद नहीं आता तुझे मेरा समर्पण
मैंने तो हर साँस भी तुझे समर्पित की है
कुछ तो मोल पाया होया मेरे समर्पण का
अब नहीं संभले तो कब सम्भलोगे तुम
अजीब सिला दिया तूने मेरे संस्कारों का
ऐसा ज़हर न पीते बनता है न उगलते
मैं नीलकंठ नहीं हूँ जो विष संभाले रखूं
कब तक सपने दिखाते रहोगे तुम
सपनों की दुनियां छोड़ हकीकत के धरातल पे आओ
ज़िन्दगी सपनों के सहारे नहीं चलती
जानते तुन भी हो जानते हम भी हैं
अब यह किरचें नहीं चुभती आदत हो गई है
खुदा का वास्ता अब तो संभल जाओ