Wednesday, May 7, 2014

कौन हो तुम

 वो तेरी लहराती ओढ़नी  ,तेरा चेहरे को चूमती लटों को हटाना
 घटाओं  से  चाँद  झांक  रहा  हो जैस    तेरा  यूँ        मुस्कुराना 

वो अलबेली सी अठखेलियाँतेरी , जैसे अपनी ही दुनियाँ में होना वो निश्छल हंसी ज्यूँ  कलियाँ मुस्करा रही हों कहीं 
 वो तेरी चूढ़ीओं की खनखनाहट जैसे संगीत रस घोल रही 
पैजनियाँ तेरे पगों को धरने की संगीत बध लय का होना 
धरा की तो लगती नहीं तुम , अंग अंग ऐसा जैसे 
फुर्सत में रचना की हो तेरी रचनाकार ने 
 उफ़ धरा पे गलती से आ गई , किस दुनियां की हो तुम 
  वो तेरी मांग में चमकता सिंधूर किसी की अमानत हो तुम 
  माथे पे बिंदिया का चार चाँद लगाना तेरे रूप को 
 अप्सरा हो तुम   , या कोई सपना हो किसी रचनाकार का 
एक ऐसी आभा तेरे मुख पर , जिसका सामना हर कोई न कर पाए 
  क्या  नाम दूं तुझे , सपना या हकीकत , कवी की कविता 
 अभी तक असमजंस में हूँ मैं क्या  नाम दूं तुझे 




13 comments:

  1. wah jarur koi kavi ki kalpna hi hai ..

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  2. Ji Upasna sakhi kavi ki kalpna lagi mujhe bhi

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  3. धन्यवाद जोशी जी

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  4. क्या नाम दूं तुझे , सपना या हकीकत , कवी की कविता
    अभी तक असमजंस में हूँ मैं क्या नाम दूं तुझे

    सही कहा जी आपने .

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  5. धन्यवाद संजय जी

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  6. लाजवाब और भावपूर्ण रचना...बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया

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  7. किसी कवि की कल्पना ..और क्या

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