
यहाँ तो खूब रौनक हुआ करती थी
हंसी ठीठोली गूंजा करती थी
कोई अपनी सास का गुणगान करती
तो कोई पिया की चिठ्ठी को बांचती
यह पनघट की डगर जहाँ
कोई मदमस्त गुनगुनाता जा रहा होता
कोई शर्माती सकुचाती नवेली
पायल कंगन खनखनाती
घड़ा उठाये जा रही होती
पनघट तो वहीँ हैं सूने सूने
रस्ते भी वहीँ है किसी की बात जोहते
शायद मेरी तरह अब उम्र हो गई इनकी भी
अब सूना सून अहै सब