चल खुद के लिय जिया जाये
बहुत जी लिए दुनियां के लिय
अभी भी कुछ लम्हें हैं हम दोनों के पास
कहीं फिर रंज न रह जाये
बेवजह वक़्त को इलज़ाम न दिया जाए
साथी चल अभी भी कदम से कदम
मिला लिया जाए
चल भुला के सब दूर कहीं खो जाएँ
जहाँ बस मैं और तू भुला हम हो जाएँ
गिले शिकवों से बहूत दूर चले जाएँ
मुश्किल हो शायद पर नामुमकिन नहीं
चल नई राह बनाई जाए
चल खो जाएँ दूर उन पहाड़ों की खामोशिओं में
उस हवा से लहराते पत्तों के संगीत में
चल राही राह बनाएं , चल साथी में तू भूल हम हो जाएँ
बहुत जी लिए दुनियां के लिय
अभी भी कुछ लम्हें हैं हम दोनों के पास
कहीं फिर रंज न रह जाये
बेवजह वक़्त को इलज़ाम न दिया जाए
साथी चल अभी भी कदम से कदम
मिला लिया जाए
चल भुला के सब दूर कहीं खो जाएँ
जहाँ बस मैं और तू भुला हम हो जाएँ
गिले शिकवों से बहूत दूर चले जाएँ
मुश्किल हो शायद पर नामुमकिन नहीं
चल नई राह बनाई जाए
चल खो जाएँ दूर उन पहाड़ों की खामोशिओं में
उस हवा से लहराते पत्तों के संगीत में
चल राही राह बनाएं , चल साथी में तू भूल हम हो जाएँ
bahut sundar kavita asha ji .....jo pal chale gye wah to nahi aate fir ham aane wale palon ko to bandh hi sakte hain ....
ReplyDeleteआभार Upasna सखी
Deleteकल आपकी रचना से प्रेरित हो यह प्रयास किया
बहुत भावपूर्ण रचना...दूसरों के लिए जीते हुए हम खुद के लिए जीना भूल ही जाते हैं..
ReplyDeleteजी कैलाश जी .....टिप्पणी के लिए आभार
Deleteबहुर कहा आशा ....बधाई
ReplyDeleteआभार Rama
Deleteबहुत खूब ... सच है की कभी कभी खुद के लिए समय निकालना जरूरी होता है ... खुद को जानना जरूरी होता है ...
ReplyDeleteDigambe Naswa जी शुक्रिया वक नन्हा सा पर्यास
Deleteआभार राजेंद्र जी
ReplyDeleteगिले शिकवों से बहूत दूर चले जाएँ
ReplyDeleteमुश्किल हो शायद पर नामुमकिन नहीं
bahut badhiya,
मेरी सोच मेरी मंजिल
शुक्रिया Sanghsheel 'Sagar' ji
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