Thursday, February 2, 2017

         मुक्तक

खामोश रह के भी हम सब कह गए
बात और है कि वो अनजान रह गए
सिये होंठ मुस्कुरा के सब सह गए
दिल के अरमान बस दिल में रह गए
आशा शर्मा डोहरू

Monday, March 21, 2016

सन्देश

धरा से सीखो सहनशीलता
सीना चीरने पे भी लहलाती फसलें दे

आसमां से सीखो विशाल ह्र्द्यता
अनंत, अथाह दूर दूर तक एक समान

पर्वतों से सीखो अडिग सुदृढ़ता
हर तूफां को झेल अडिग खड़े

नदिया से सीखो  अपनी राह चलना
हर बाधा को तोड़ कलकल बहना

रवि से सीखो प्रकाश बिखेरना
हर सुबह अपने पथ पर चलना
खुद को जला  औरों को रौशन करना

चाँद से सीखो शांत प्रसन्नचित रहना
इतना मधुर कि सब जुड़ना चाहें

पंछिओं से सीखो तिनका तिनका जोड़
नीड़ बना उसे आशाओं से भरना

हवा से सीखो सब संग उडाना
दूर दूर तक पहुंचाना

प्राकृति हर शै में  सुंदर संदेसा भेजे
बीएस हमको है उसे  पढ़ जीवन में उतारना

Friday, March 4, 2016

बढ़े चलो

 मेरे देश के नौनिहालों बढ़े चलो
हर आँख की आस को पूरा करे चलो

राह कठिन तो है असंभव  नहीं
हो बापू की आस , भगत सिंह की हुंकार
झाँसी की रानी सी वीरता , बोस सा साहस
ले  कर्तव्य पथ पे डटे रहो .............

तुम बनो निर्माता नव भारत के
माँ भारती तुम्हें पुकार के कहे
तोड़ो जात पात के बंधन
भारत माँ के लाल हो याद रहे

इक नया इतिहास तुम्हे बनाना है
हर लव पे हो झंडा ऊँचा रहे हमारा
सब धर्मो से उपर राष्ट्र धर्म बनाना है
जय माँ भारती , जय माँ शारदे कहे चलो

मेरे देश के नौनिहालों बढ़े चलो
हर आँख की आस को पूरा करे चलो






Friday, January 29, 2016

आंतकवाद

                       विधा :- स्वंतत्र
                      किसने बनाया आंतकवाद ,
                      ना इसका कोई धर्म ना जात
                       इंसानियत से तो कोई नाता नहीं
                        हैवानियत का पुजारी है यह


                     कितने घर उजाड़े इसने
                     कितनो  की मांगें उजाड़ दी
                      कितनी कोखें सूनी कर दी
                    हर और दहशत फैला  दी

                  भाई भाई का दुश्मन बना दिया
                   जिसका कोई वजूद ही नहीं
                   उसपे झगड़ा करवा दिया
                वाह रे वाह  आंतकवाद  ...........
               

               सरे  राह बहन बेटी की इज्ज़त
                उछाल रहे हो नाम जिहाद का देकर
               माँ सूनी आँखों से राह निहारटी
                 उस पूत की जो कभी आने वाला नहीं

                नन्हें दीयों को बुझा कौन सा
              उजाला   करने वाले हो .........
                  खून  की नदियाँ  बहा
                 किसे पवित्र करने वाला है

               सोच के देखो कल
             इनकी जगह  तुम्हारे अपने होंगे
                 मत जिओ भ्रम में
           जो बीज रहे हो कल काटना भी है .......आशा  शर्मा डोहरू

Saturday, January 9, 2016

मित्रता

            विधा :- स्वंतत्र

    इत्र सी होती है मित्रता
    सब रिश्तों की पूर्ती
     होती है मित्रता .....

   जहाँ सब छोड़ जाते हैं
   वहां आ खड़ी होती है मित्रता
   कठिन से कठिन समय
   भी मुस्कुराना सिखाती है मित्रता .........

   करण का त्याग व
  अर्जुन  सा विश्वास
   सुदाम कृषण सा
    भाव है मित्रता ........

   रोने के लिए कन्धा
  ख़ुशी में खिलखिलाहटें
    देती है मित्रता .................

    असल मायने  में
    तो यही है मित्रता
    बात और है लोग
   अपने अनुसार गढ़
        लेते हैं मित्रता ..........

   खुशनसीब  होंगे वो लोग
  जिन्हें सही मायने में
   आज के समय में मिल
  जाए सच्ची मित्रता








Monday, April 20, 2015

यह इंसान

          यह इंसान 
    क्या  हथकंडे अपनाता है इंसान
    सिर्फ पैसे कमाने के लिए ,
    कभी दोस्ती का ढोंग
   कभी झूठे रिश्तों का आवरण ,
    सिर्फ पैसे तक सम्बन्ध
    पैसे पे शुरू पैसे पे ख़त्म ,

   अरे नादां इंसान किसके लिए
    करता है तू यह ,
  कल जब तक तुझे इसका एहसास होगा
   तब तक बहुत  कुछ तुझसे छिन्नचूका होगा
  जिम्के लिए तू यह सब कर रहा है
  वो तो तुझे भी भूल चुके होंगे ,
  क्यूंकि तुझसे उन्होंने भी तो सीखा होगा
  कि सिर्फ पैसा , सिर्फ पैसा
  तो क्यूँ देंगे तुझ पे ध्यान ,
  तूने ही तो उन्हें विरासत दी होगी

  आज कर्म मायने नहीं रखता लोगों को
  धन मायने रखता है ,
   क्या  फायदा इन फरेबों का
  गर दो पल का सुकून नहीं तेरे पास ,
  कल तेरे पास सिर्फ हिसाब होगा
  जो तू करता रहेगा ,
  साथ नहीं होगा किसी का ,
   पैसों से नींद खरीद पाएगा ?
  भूख खरीद पायेगा  ?
  रिश्ते खरीद पायेगा ?

  गर कहीं किसी को इन सब की दूकान मिले
  तो मुझे भो पता देना !
  क्या  शै बनाई है भगवान ने भी
  यह इंसान ,
  बस अपने स्वार्थ के पीछे पागल




Tuesday, April 7, 2015

  हर जगह अव्वल आने की होड़

हर जगह अव्वल आने की होड़ रहती
  सबसे सलीके से बात करने की होड़
  बचपन से सिखा दी , बचपन खो गया कहीं
  उस नादाँ को तो भनक भी नहीं थी

  बस वाह वाह की लत डाल  दी बचपन में
 कुछ और बढ़े तो पढ़ाई में  अव्वल आने की होड़
 हर मुकाबले में अव्वल आने की होड़
  खिलखिलाता अल्हड़पन भी खो गया इस होड़ में
  पता ही नहीं चला कब आया था वो पल

 इस होड़ में पता ही नहीं चला
 कब खुद से हार गई वो
 सब मुकाबलों  में अव्वल आने वाली
 होड़ में सब खो देने वाली अपने आप से हार गई वो

 भाग्य के लेखों से हार गई वो
 तमाम हसरतें  जिनका आभास नहीं हुआ
अव्वल आने की होड़ में , संदूकची में बंद हसरतें
    कराहती रह गई ,

  ऐसा खेल खेल गया भाग्य कि
   ज़िन्दगी कि रेस में हार गई वो
  तमाम हसरतें दम तोडती रही
  किसी को बता भी नहीं सकी वो

जाने अनजाने संजोये सपने
उसके किसी  और के हो गए
उसी  के  सामने जो उसके थे
उसे अव्वल आने  की होड़ जो थी
 सो चुपचाप  होठ सी लिए उसने

लहुलुहान  अंतर्मन को मुस्कुराहटों में छुपा लिया
सबके सामने मजबूत दिखने की होड़ में
 अव्वल  आने की होड़  में  क्या पाया ?
जिंदगी इक नया सबक सिखा गई उसे इस होड़ में |