Wednesday, May 28, 2014
Tuesday, May 27, 2014
यादों का बक्सा
आज पुराने सामान को खंगालने बैठी
तो जैसे अतीत में खो गई !
छोटे छोटे मोजे. कुरते , और न जाने क्या क्या
जैसे कुबेर का खजाना हाथ लग गया हो
खिलोने को देख कर जैसे फिर से जी उठी हूँ
लवों पैर स्वयता मुस्कुराहट आ गई
खो गई तुम लोगों के बचपन में
आज तो तुम कहते हो , आपको कुछ नहीं पता
याद आ गया वो ज़माना जब पग
भी पूछ के धरते थे , माँ की सिवा किसी पे भरोसा न था
वो जमीं से निकले नन्हे पौधे की तरह सुकोमल
अक्ष याद आ गया , अब तो तुममजबूत बृक्ष हो
तभी हाथ से खिलौना गिरा , और वर्तमान में आ गई
अब यह तो बस यादों के बक्सों में बंद रहेंगे
तो जैसे अतीत में खो गई !
छोटे छोटे मोजे. कुरते , और न जाने क्या क्या
जैसे कुबेर का खजाना हाथ लग गया हो
खिलोने को देख कर जैसे फिर से जी उठी हूँ
लवों पैर स्वयता मुस्कुराहट आ गई
खो गई तुम लोगों के बचपन में
आज तो तुम कहते हो , आपको कुछ नहीं पता
याद आ गया वो ज़माना जब पग
भी पूछ के धरते थे , माँ की सिवा किसी पे भरोसा न था
वो जमीं से निकले नन्हे पौधे की तरह सुकोमल
अक्ष याद आ गया , अब तो तुममजबूत बृक्ष हो
तभी हाथ से खिलौना गिरा , और वर्तमान में आ गई
अब यह तो बस यादों के बक्सों में बंद रहेंगे
Wednesday, May 7, 2014
कौन हो तुम
वो तेरी लहराती ओढ़नी ,तेरा चेहरे को चूमती लटों को हटाना
घटाओं से चाँद झांक रहा हो जैस तेरा यूँ मुस्कुराना
वो अलबेली सी अठखेलियाँतेरी , जैसे अपनी ही दुनियाँ में होना वो निश्छल हंसी ज्यूँ कलियाँ मुस्करा रही हों कहीं
वो तेरी चूढ़ीओं की खनखनाहट जैसे संगीत रस घोल रही
पैजनियाँ तेरे पगों को धरने की संगीत बध लय का होना
धरा की तो लगती नहीं तुम , अंग अंग ऐसा जैसे
फुर्सत में रचना की हो तेरी रचनाकार ने
उफ़ धरा पे गलती से आ गई , किस दुनियां की हो तुम
वो तेरी मांग में चमकता सिंधूर किसी की अमानत हो तुम
माथे पे बिंदिया का चार चाँद लगाना तेरे रूप को
अप्सरा हो तुम , या कोई सपना हो किसी रचनाकार का
एक ऐसी आभा तेरे मुख पर , जिसका सामना हर कोई न कर पाए
क्या नाम दूं तुझे , सपना या हकीकत , कवी की कविता
अभी तक असमजंस में हूँ मैं क्या नाम दूं तुझे
घटाओं से चाँद झांक रहा हो जैस तेरा यूँ मुस्कुराना
वो अलबेली सी अठखेलियाँतेरी , जैसे अपनी ही दुनियाँ में होना वो निश्छल हंसी ज्यूँ कलियाँ मुस्करा रही हों कहीं
वो तेरी चूढ़ीओं की खनखनाहट जैसे संगीत रस घोल रही
पैजनियाँ तेरे पगों को धरने की संगीत बध लय का होना
धरा की तो लगती नहीं तुम , अंग अंग ऐसा जैसे
फुर्सत में रचना की हो तेरी रचनाकार ने
उफ़ धरा पे गलती से आ गई , किस दुनियां की हो तुम
वो तेरी मांग में चमकता सिंधूर किसी की अमानत हो तुम
माथे पे बिंदिया का चार चाँद लगाना तेरे रूप को
अप्सरा हो तुम , या कोई सपना हो किसी रचनाकार का
एक ऐसी आभा तेरे मुख पर , जिसका सामना हर कोई न कर पाए
क्या नाम दूं तुझे , सपना या हकीकत , कवी की कविता
अभी तक असमजंस में हूँ मैं क्या नाम दूं तुझे
Sunday, May 4, 2014
कौन हो तुम
क्या रिश्ता है मेरा तुम्हारा
हर मुश्किल में साथ
न होने पे भी एहसास तेरा
न खून का रिश्ता
न कोई सम्बन्ध हमारा
बिन कहे कई बार तेरा
साथ देना
एक अलग ही दुनिया बसा
दी तूने जिसकी न कोई पहचान
न कोई नाम
वो लड़ना झगड़ना
रूठना मनाना
घंटों यूँ ही बतियाते रहना
कौन हो तुम
क्या हो तुम
किस जहाँ से हो तुम
यहाँ तो कोई भी बिन
मतलब नहीं होता किसी का
गैरों की क्या बात करें
अपनों का साथ नसीब नहीं होता
जब भी में हार गई
तूने हसी हसी में मुझे नईआशा दिखाई
यूँ ही पाक पवित्र रहे तुम
हर मुश्किल में साथ
न होने पे भी एहसास तेरा
न खून का रिश्ता
न कोई सम्बन्ध हमारा
बिन कहे कई बार तेरा
साथ देना
एक अलग ही दुनिया बसा
दी तूने जिसकी न कोई पहचान
न कोई नाम
वो लड़ना झगड़ना
रूठना मनाना
घंटों यूँ ही बतियाते रहना
कौन हो तुम
क्या हो तुम
किस जहाँ से हो तुम
यहाँ तो कोई भी बिन
मतलब नहीं होता किसी का
गैरों की क्या बात करें
अपनों का साथ नसीब नहीं होता
जब भी में हार गई
तूने हसी हसी में मुझे नईआशा दिखाई
यूँ ही पाक पवित्र रहे तुम
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