Tuesday, June 18, 2013

दुआयें

                          दुआयें
जहाँ अपनों के लिए दुआएँ मांगने जाते थे
वहां आज अपनों की सलामती कर रहे हैं
भगवन हमें यहाँ से सकुशल बचा ले अबकी बार
सब घरों मैं बैठे भगवन से कह रहे हैं हमारे लोगों को बचाना
मन्नते मांग रहे हैं बस इस बार बचा ले
कोई जंगल में कोई सड़क किनारे वहां भी सहमे हुए
उफ़ कुदरत बेरहम है या हम भूल गए हैं
हमसे भी उपर कोई ताकत है
विधि को कोई नहीं पढ़ सकता
लाख दावे कर  वो शक्ति अपरम्पार है
मौसम विभाग के दावे प्रक्रति का क्रोध
कौन शांत करे कितनी लाशो के अम्बार लगे होंगे
भूख से बच्चे बिलख रहे होंगे
अब तेरियां तू ही जान
पर माओं के बेटे ,बहनों के भाई
पत्नी के पति लौटा दे
बस यही इल्तजा है
अल्लाह वालो राम वालो अपनों को बचा लो............



Saturday, June 8, 2013

यह बदलते रिश्ते

    

                                       यह बदलते रिश्ते
कहाँ चला जाता है वो भाई भाई का प्यार !  जो बचपन में इक दूजे बिन साँस भी नहीं लेते थे . बड़े होकर क्यूँ इक दूजे के दुश्मन बन जाते हैं . यह जमीनों के टुकड़े या माँ बाप की जिम्मेदारियां कौन उन्हें  एक दू सरे का दुश्मन बना देता है .कहाँ चला जाता है वो प्यार . जो हर छोटी छोटी चीज़ एक दुसरे से बांटते थे अब क्यूँ सब भूल गए . यही अगर परिवार है तो मुझे नहीं चाहिए ऐसे रिश्ते जो हेर वक़्त नासूर बनकेदर्ददेतेरहें .बचपन से सुनते आये हैंअपनेतोअपनेहोतेहैं .कौनहैंवोअपने ?यहाँतोअपनों ने ही जीना दुश्वार किया हुआहै .कहाँजारही है आज की पीड़ी. हम कहाँ खोते जा रहे हैं . यह भौतिकबाद हमारे रिश्तों पे भारी पड़ रहा है . कहाँ से ढूंढें इन प्रश्नों के उत्तर  ?मुझे नहीं लगता कि भाई  बाजू  होते हैं . भाई तो बाजू  काटने वालों में ही दिखे . क्या फायदा ऐसे रिश्तों को ढोने  से .उफ़ अपने ही घर 

में

बेगाने कर दिए . किस्से पूछें ? कौन इस समस्या का समाधान करेगा ? कोई उत्तर  नहीं है . बस खुद ही प्रशन करके खुद ही अनुमान लगा लिए जाते हैं . आंसू मुस्कराहटों  में छुपा लिए जाते हैं .
यह दुनियां के बदलते रिश्तों को झोली मैं समेट लेते हैं .