Tuesday, May 27, 2014

यादों का बक्सा

    आज पुराने सामान को खंगालने बैठी
          तो जैसे अतीत में खो गई !
     छोटे छोटे मोजे. कुरते , और न जाने क्या क्या
    जैसे कुबेर का खजाना हाथ लग गया हो
   खिलोने को देख कर जैसे फिर से जी उठी हूँ
   लवों पैर स्वयता मुस्कुराहट आ गई
      खो गई तुम लोगों के बचपन में
   आज तो तुम कहते हो , आपको कुछ नहीं पता
    याद आ गया वो ज़माना जब पग
    भी पूछ के धरते थे , माँ की सिवा किसी पे भरोसा न था
       वो जमीं से निकले नन्हे पौधे की तरह सुकोमल
      अक्ष याद आ गया , अब तो तुममजबूत बृक्ष हो
     तभी हाथ से खिलौना गिरा , और वर्तमान में आ गई
      अब यह तो बस  यादों के बक्सों में बंद रहेंगे

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