नदी अपने पूरे उफान पे है
चारों ओर हाहाकार मची है
तबाही ही तबाही हर ओर
जलथल हुई धरा
नदी में उफान क्यों
यह शांत कलकल
आज उफान क्यूँ
ज्यूँ हर बाधा तोड़
सब बहा ले जाना हो
चारों ओर हाहाकार मची है
तबाही ही तबाही हर ओर
जलथल हुई धरा
नदी में उफान क्यों
यह शांत कलकल
आज उफान क्यूँ
ज्यूँ हर बाधा तोड़
सब बहा ले जाना हो
यह तो सोचा होता
कितना बाँधा है किनारों को
सब इसमें डाल दिया
जो जिसे मिला
कितना बाँधा है किनारों को
सब इसमें डाल दिया
जो जिसे मिला
इसके सहने की भी सीमा है
यह किसने सोचा
इसकी भी अपनी गति है
किसने समझा
यह किसने सोचा
इसकी भी अपनी गति है
किसने समझा
इसके किनारों को कितना बांधते
कितना सहा इसने
किसी ने नहीं सोचा
कितना खुद में समाये रही
कौन जाने
कितना सहा इसने
किसी ने नहीं सोचा
कितना खुद में समाये रही
कौन जाने
कुछ दिन के उफान के बाद
फिर उसी रस्ते चल देगी
फिर उसी रस्ते चल देगी
इसके किनारों पे दुनिया बसी रहे
यह वसुंधरा हरी रहे
सब भूल इन अपनों के लिए
फिर सब अपने अंदर
दफना फिर शांत होगी
उसी पथ पे कलकल
यह वसुंधरा हरी रहे
सब भूल इन अपनों के लिए
फिर सब अपने अंदर
दफना फिर शांत होगी
उसी पथ पे कलकल
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