Thursday, November 27, 2014

साथी चल नई राह बनाएँ

चल खुद के लिय जिया जाये
बहुत जी लिए दुनियां के लिय
अभी भी कुछ लम्हें हैं हम दोनों के पास
कहीं फिर रंज न रह जाये
बेवजह वक़्त को इलज़ाम न दिया जाए
 साथी चल अभी  भी कदम से कदम
                मिला लिया जाए
चल भुला के सब दूर कहीं खो जाएँ
जहाँ बस मैं और तू भुला हम हो जाएँ
गिले शिकवों से बहूत दूर चले जाएँ
मुश्किल हो शायद पर नामुमकिन नहीं
    चल नई राह बनाई जाए
चल खो जाएँ दूर उन पहाड़ों की खामोशिओं में
उस हवा से लहराते पत्तों के संगीत में
चल राही राह  बनाएं , चल साथी में तू भूल हम हो जाएँ

11 comments:

  1. bahut sundar kavita asha ji .....jo pal chale gye wah to nahi aate fir ham aane wale palon ko to bandh hi sakte hain ....

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    1. आभार Upasna सखी
      कल आपकी रचना से प्रेरित हो यह प्रयास किया

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  2. बहुत भावपूर्ण रचना...दूसरों के लिए जीते हुए हम खुद के लिए जीना भूल ही जाते हैं..

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    1. जी कैलाश जी .....टिप्पणी के लिए आभार

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  3. बहुत खूब ... सच है की कभी कभी खुद के लिए समय निकालना जरूरी होता है ... खुद को जानना जरूरी होता है ...

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    1. Digambe Naswa जी शुक्रिया वक नन्हा सा पर्यास

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  4. आभार राजेंद्र जी

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  5. गिले शिकवों से बहूत दूर चले जाएँ
    मुश्किल हो शायद पर नामुमकिन नहीं
    bahut badhiya,
    मेरी सोच मेरी मंजिल

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  6. शुक्रिया Sanghsheel 'Sagar' ji

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