Tuesday, April 7, 2015

  हर जगह अव्वल आने की होड़

हर जगह अव्वल आने की होड़ रहती
  सबसे सलीके से बात करने की होड़
  बचपन से सिखा दी , बचपन खो गया कहीं
  उस नादाँ को तो भनक भी नहीं थी

  बस वाह वाह की लत डाल  दी बचपन में
 कुछ और बढ़े तो पढ़ाई में  अव्वल आने की होड़
 हर मुकाबले में अव्वल आने की होड़
  खिलखिलाता अल्हड़पन भी खो गया इस होड़ में
  पता ही नहीं चला कब आया था वो पल

 इस होड़ में पता ही नहीं चला
 कब खुद से हार गई वो
 सब मुकाबलों  में अव्वल आने वाली
 होड़ में सब खो देने वाली अपने आप से हार गई वो

 भाग्य के लेखों से हार गई वो
 तमाम हसरतें  जिनका आभास नहीं हुआ
अव्वल आने की होड़ में , संदूकची में बंद हसरतें
    कराहती रह गई ,

  ऐसा खेल खेल गया भाग्य कि
   ज़िन्दगी कि रेस में हार गई वो
  तमाम हसरतें दम तोडती रही
  किसी को बता भी नहीं सकी वो

जाने अनजाने संजोये सपने
उसके किसी  और के हो गए
उसी  के  सामने जो उसके थे
उसे अव्वल आने  की होड़ जो थी
 सो चुपचाप  होठ सी लिए उसने

लहुलुहान  अंतर्मन को मुस्कुराहटों में छुपा लिया
सबके सामने मजबूत दिखने की होड़ में
 अव्वल  आने की होड़  में  क्या पाया ?
जिंदगी इक नया सबक सिखा गई उसे इस होड़ में |




 
  

2 comments:

  1. लहुलुहान अंतर्मन को मुस्कुराहटों में छुपा लिया
    सबके सामने मजबूत दिखने की होड़ में
    अव्वल आने की होड़ में क्या पाया ?
    जिंदगी इक नया सबक सिखा गई उसे
    bilkul sahi baat ....ek kadu saty

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद इस कड़ी से जोड़ने के लिए
    Upasna Sakhi

    ReplyDelete