Saturday, June 8, 2013

यह बदलते रिश्ते

    

                                       यह बदलते रिश्ते
कहाँ चला जाता है वो भाई भाई का प्यार !  जो बचपन में इक दूजे बिन साँस भी नहीं लेते थे . बड़े होकर क्यूँ इक दूजे के दुश्मन बन जाते हैं . यह जमीनों के टुकड़े या माँ बाप की जिम्मेदारियां कौन उन्हें  एक दू सरे का दुश्मन बना देता है .कहाँ चला जाता है वो प्यार . जो हर छोटी छोटी चीज़ एक दुसरे से बांटते थे अब क्यूँ सब भूल गए . यही अगर परिवार है तो मुझे नहीं चाहिए ऐसे रिश्ते जो हेर वक़्त नासूर बनकेदर्ददेतेरहें .बचपन से सुनते आये हैंअपनेतोअपनेहोतेहैं .कौनहैंवोअपने ?यहाँतोअपनों ने ही जीना दुश्वार किया हुआहै .कहाँजारही है आज की पीड़ी. हम कहाँ खोते जा रहे हैं . यह भौतिकबाद हमारे रिश्तों पे भारी पड़ रहा है . कहाँ से ढूंढें इन प्रश्नों के उत्तर  ?मुझे नहीं लगता कि भाई  बाजू  होते हैं . भाई तो बाजू  काटने वालों में ही दिखे . क्या फायदा ऐसे रिश्तों को ढोने  से .उफ़ अपने ही घर 

में

बेगाने कर दिए . किस्से पूछें ? कौन इस समस्या का समाधान करेगा ? कोई उत्तर  नहीं है . बस खुद ही प्रशन करके खुद ही अनुमान लगा लिए जाते हैं . आंसू मुस्कराहटों  में छुपा लिए जाते हैं .
यह दुनियां के बदलते रिश्तों को झोली मैं समेट लेते हैं .

                                  


6 comments:

  1. रिश्तों में सामंजस्य पर आत्मचिंतन को झकझोरती सुन्दर पोस्ट , आशा जी

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    1. विजय जी आजकल की ज़िन्दगी का आयना है
      हम में से काफी इस दर्द से गुजर रहे होंगे

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    1. धन्यवाद मुकेश जी
      पर यह सचाई सालती है :(

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  3. सच्चाई ..............बहुत सुंदर लिखा आशा

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    1. रमा यह सचाई हज़म नहीं होती
      इन्सान बदल कैसे जाता है

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