क्या रिश्ता है मेरा तुम्हारा
हर मुश्किल में साथ
न होने पे भी एहसास तेरा
न खून का रिश्ता
न कोई सम्बन्ध हमारा
बिन कहे कई बार तेरा
साथ देना
एक अलग ही दुनिया बसा
दी तूने जिसकी न कोई पहचान
न कोई नाम
वो लड़ना झगड़ना
रूठना मनाना
घंटों यूँ ही बतियाते रहना
कौन हो तुम
क्या हो तुम
किस जहाँ से हो तुम
यहाँ तो कोई भी बिन
मतलब नहीं होता किसी का
गैरों की क्या बात करें
अपनों का साथ नसीब नहीं होता
जब भी में हार गई
तूने हसी हसी में मुझे नईआशा दिखाई
यूँ ही पाक पवित्र रहे तुम
हर मुश्किल में साथ
न होने पे भी एहसास तेरा
न खून का रिश्ता
न कोई सम्बन्ध हमारा
बिन कहे कई बार तेरा
साथ देना
एक अलग ही दुनिया बसा
दी तूने जिसकी न कोई पहचान
न कोई नाम
वो लड़ना झगड़ना
रूठना मनाना
घंटों यूँ ही बतियाते रहना
कौन हो तुम
क्या हो तुम
किस जहाँ से हो तुम
यहाँ तो कोई भी बिन
मतलब नहीं होता किसी का
गैरों की क्या बात करें
अपनों का साथ नसीब नहीं होता
जब भी में हार गई
तूने हसी हसी में मुझे नईआशा दिखाई
यूँ ही पाक पवित्र रहे तुम
Shukriya Yashoda Ji
ReplyDeleteAap geeto me bhi mahir ho kavita me bhi kabil ho vah aap ka shisya Ban jau aisa jee karta hai
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteधन्यवाद Neeraj जी
Delete☆★☆★☆
जब भी में हार गई
तूने हंसी हंसी में मुझे नई आशा दिखाई
यूं ही पाक पवित्र रहे तुम
वाह !
बिना स्वार्थ रिश्ते का पाक-पवित्र होना बड़ी बात है...
आदरणीया आशा जी !
सुंदर कविता के लिए हृदय से साधुवाद स्वीकार करें ।
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
हार्दिक धन्यवाद Rajendra जी हौसला अफजाई के लिए
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