यह तो बता देते कया चाहते हो तुम
क्यूँ मुझे चाक चाक करते हो
मैं तो इन ज़र्रों को कफ़न में लपेटे हूँ
कभी याद नहीं आता तुझे मेरा समर्पण
मैंने तो हर साँस भी तुझे समर्पित की है
कुछ तो मोल पाया होया मेरे समर्पण का
अब नहीं संभले तो कब सम्भलोगे तुम
अजीब सिला दिया तूने मेरे संस्कारों का
ऐसा ज़हर न पीते बनता है न उगलते
मैं नीलकंठ नहीं हूँ जो विष संभाले रखूं
कब तक सपने दिखाते रहोगे तुम
सपनों की दुनियां छोड़ हकीकत के धरातल पे आओ
ज़िन्दगी सपनों के सहारे नहीं चलती
जानते तुन भी हो जानते हम भी हैं
अब यह किरचें नहीं चुभती आदत हो गई है
खुदा का वास्ता अब तो संभल जाओ
मार्मिक रचना.. दिल छू लिया आशा
ReplyDeleteधन्यबाद रमा
ReplyDeleteBahut hi sundar prsturi,abhar aapka.
ReplyDeleteधन्यबाद राजेन्द्र क़ुमार जी
Deleteआपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........
ReplyDeleteकभी याद नहीं आता तुझे मेरा समर्पण
मैंने तो हर साँस भी तुझे समर्पित की है
कुछ तो मोल पाया होया मेरे समर्पण का
अब नहीं संभले तो कब सम्भलोगे तुम
बुधवार 02/10/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
शुक्रिया यशोदा जी
Deleteअब भी संभल जाओ .....
ReplyDeleteमार्मिक रचना .. बधाई आप को आशा जी
धन्यबाद मीना जी
Deleteमार्मिक रचना .... शुभकामनाये ..:)
ReplyDeleteअजीब सिला दिया तूने मेरे संस्कारों का
ऐसा ज़हर न पीते बनता है न उगलते
मैं नीलकंठ नहीं हूँ जो विष संभाले रखूं
धन्यबाद सुनीता अग्रवाल जी
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