Sunday, September 1, 2013

नारी कहाँ है तू

सपनों में कब तक जियेगी यह  नारी
रोज़ मर मर के क्यों जियेगी  यह नारी |

किस जहाँ में पूजनीय थी तू
यहाँ यो पल पल घुटती है तू |

किसके लिए जीती है तू
खुद भी जानती नहीं   है तू |

राम को अब भी सीता का त्याग चाहिए
सीता को क्या यूँ ही हर  बार कुर्बान होना चाहिए |

समझ नहीं पाई तू , तभी तो नासमझ कहलाई तू ,
बस कर अब तो जाग जा तू |

माँ , बेटी, पत्नी और बहन ही नहीं है तू ,
खुद का बजूद भी ढून्ढ अब तू |

किस आस में जी रही है तू ,
कुछ नहीं बदलेगा यूँ ही झूठे सपने देखती है तू |

कोई नहीं समझता तेरी ख़ामोशी ,
जिंदा होने का एहसास अब तो कर तू  |

क्यूँ कठपुतली बनी हुई है तू ,
अब तो जाग सुबह का इंतज़ार मत कर तू |

आइय्ना देख खुद को भी पहचान न पाएगी  तू ,
किस फ़रिश्ते के इंतज़ार में है तू |








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