हवाओं मे खुम्मार सा है
पुष्पों का अम्बार सा क्यूँ है
अलसाई सी भोर में गुनगुनाहट सी क्यूँ है
परिंदों की भी चहचहाट लुभावनी सी क्यूँ है
चारों ओर मन लुभावनी महक सी क्यूँ है
बादलों की गरज में भी सनसनाहट सी क्यों है
छू कर जाती हवाओं में भी सरसराहट सी क्यूँ है
मद्धम मद्धम पायल चूड़ी का संगीत सा क्यूँ है
यह चहुँ ओर ख़ुमार सा क्यों है
पेड़ पौधों का रंग निखरा निखरा सा क्यूँ है
मुस्कुराहटों चहचहाटो का दौर क्यूँ है
कहीं दूर भोर की दस्तक लगती है
कहीं रौशनी के पग का स्वर है शायद
हल्का सा रौनकों का असार है शायद
पुष्पों का अम्बार सा क्यूँ है
अलसाई सी भोर में गुनगुनाहट सी क्यूँ है
परिंदों की भी चहचहाट लुभावनी सी क्यूँ है
चारों ओर मन लुभावनी महक सी क्यूँ है
बादलों की गरज में भी सनसनाहट सी क्यों है
छू कर जाती हवाओं में भी सरसराहट सी क्यूँ है
मद्धम मद्धम पायल चूड़ी का संगीत सा क्यूँ है
यह चहुँ ओर ख़ुमार सा क्यों है
पेड़ पौधों का रंग निखरा निखरा सा क्यूँ है
मुस्कुराहटों चहचहाटो का दौर क्यूँ है
कहीं दूर भोर की दस्तक लगती है
कहीं रौशनी के पग का स्वर है शायद
हल्का सा रौनकों का असार है शायद
yah kisi ke aane ki aahat to nahi ....:)
ReplyDeleteUpasna सखी एक भोर की आहट लगती है :)
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